यूनिसेफ ने देहरादून में जरूरी जांच परख आधारित कार्यशाला का किया आयोजन -150 से अधिक पेशेवर मीडिया कर्मियों और छात्रों ने सीखे तथ्य आधारित स्वास्थ्य पत्रकारिता के गुर

देहरादून, देहरादून में विभिन्न स्थानों से आये 150 से अधिक पेशेवर मीडिया कर्मियों ने साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य पत्रकारिता पर आयोजित दो कार्यशालाओं में भाग लिया। यह कार्यशाला 28 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक चली, इस कार्यशाला का आयोजन यूनिसेफ द्वारा किया गया।
मीडिया कर्मियों के लिए जरूरी जांच परख से जुड़ी इस महत्वपूर्ण कार्यशाला में भागीदारी करने वाले पेशवरों पत्रकारों ने यूनिसेफ के क्रिटिकल अप्रेजल स्किलस यानी सीएएस के इस पाठ्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य पत्रकारिता में साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग और तथ्य जांच के महत्व को सीखा। कार्यशाला में ऑनलाइन शिरकत करते हुए यूनिसेफ इंडिया की संचार, एडवोकेसी एवं भागीदारी प्रमुख ज़ाफरीन चौधरी ने कहा कि ‘‘गलत सूचना शायद वायरस से अधिक संक्रामक है। यह तेजी से फैलता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक आसन्न खतरा बन गया है। उन्होंने कहा, सीएएस किसी भी गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए एक समग्र 360 डिग्री विज्ञान-आधारित संचार दृष्टिकोण बनाने और मीडियाकर्मियों की क्षमता-निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। ज़ाफरीन चौधरी ने कहा एक प्रभावी दो-तरफा संचार सुनिश्चित करने में मीडिया की एक अहम भूमिका है, ताकि टीकाकरण और समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन की जमीनी हकीकत को नीति निर्माताओं तक पहुंचायी जा सके। टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एन. के. अरोड़ा ने पत्रकारों के साथ कोविड-19 टीकाकरण पर बातचीत की और मीडिया से सूचना रफ्तार को कम नहीं पड़ने देने और नए तरीके खोजने का आग्रह किया, जिससे योग्य लोगों को समय पर टीके की खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। पंकज पचौरी, जो सीएएस समिति के प्रमुख संस्थापक सदस्य रहे हैं, ने कहा कि महामारी के दौरान काल्पनिकता से परे और तथ्य की ओर ले जाने में सीएएस अत्यधिक कारगर साबित हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि पत्रकारिता और जनसंचार के पाठ्यक्रम में सीएएस को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए और इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष इस पहल को पेश किया जाना चाहिए। उन्होंने सिफारिश की कि वरिष्ठ संपादकों और मीडिया मालिकों को भी सीएएस पाठ्यक्रम को अपनाना चाहिए, जिसे पेशेवर निकायों जैसे कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और विभिन्न प्रेस क्लबों के माध्यम इस पहल को आगे बढ़ाया जा सके।
2014 में यूनिसेफ द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, थॉमसन रॉयटर्स और आईआईएमसी के सहयोगी स्वास्थ्य पत्रकारों और पत्रकारिता एवं जन संचार के छात्रों के लिए सीएएस कार्यक्रम विकसित किया था, बाद में आईआईएमसी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी ने अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया। पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला ने भी इस साल अपने तीसरे सेमेस्टर के छात्रों के पाठ्यक्रम में सीएएस को जोड़ा है। कार्यशाला में सीएएस से जुड़े पेशेवर, पत्रकारिता के छात्र और विषय विशेषज्ञ, संजय अभिज्ञान, पंकज पचौरी, मीडिया एडिटर, डॉ एन के अरोड़ा, अध्यक्ष, टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप; प्रो (डॉ) राजीव दासगुप्ता, सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय; सोमा शेखर मुलुगु, पूर्व एसोसिएट एडिटर मुरली कृष्णन चिन्नादुरई, यूनिसेफ के टीकाकरण, स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ, प्रमुख समाचार पत्रों और निजी एफएम के वरिष्ठ पत्रकार और आरजे ने नियमित टीकाकरण, कोविड-19 टीकाकरण, एंटीबायोटिक्स, बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा की।

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