ओटीएस स्कीम भू-माफियाओं व बिल्डरों को लाभ पहुंचाने तक सीमित -एचआरडीए के अधिकारियों की संलिप्तता खुलकर आने लगी सामने

हरिद्वार,शहर भर में होने वाले अवैध निर्माणों को लेकर हरिद्वार विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की उदासीनता साफ देखी जा सकती है। बिल्डरों व भू-माफियाओं द्वारा किये जा रहे अवैध निर्माणों में विभागीय अधिकारियों की संलिप्तता अब खुलकर सामने आने लगी है।धर्मनगरी हरिद्वार में बेरोकटोक धड़ल्ले से चल रहे अवैध निर्माणों से वातावरण तो प्रभावित हो ही रहा है। साथ ही शहर की सौंदर्यता भी पूरी तरह से नष्ट हो रही है। जिसका पूरा श्रय विभागीय अधिकारियों को जाता है। हरिद्वार विकास प्राधिकरण में ईमानदारी का ढ़ोल पीटने वाले अधिकारियों ने बिल्डरों व भू-माफियाओं के साथ सांठ गांठ कर अवैध निर्माणों को पूरा करवाने का ठेका अपने हाथों में ले लिया है। जिसकी एवज में अधिकारी एसी कमरों बैठ कर समय काट रहे है। भू-माफियाओं से अच्छा खासा मोटा शुविधा शुल्क लेकर अपनी जेब भरने में लगे हुए है। बताते चले कि हरिद्वार विकास प्राधिकरण द्वारा अवैध कॉलोनियों को सील करने को लेकर चलाये गया अभियान मात्र एक लोग दिखावा है। अगर देखा जाए तो यह केवल एक ढोंग है जो जनता को भ्रमित करने को लेकर चलाया जा रहा है। जहां एक ओर विभाग के ईमानदार अधिकारी कालोनियों को सील करके खुद अपनी ही पीठ थपथपाने में लगे है। वहीं दूसरी ओर शहर भर में चल रहे आश्रम, होटल, अपार्टमेंटों के रूप में अवैध निर्माण अभी भी विभाग की कार्यवाही से कोसो दूर हैं। या यूं कहे कि विभाग के ईमानदार अधिकारी इन निर्माणों को सील करना ही नही चाहते है। ऐसे ही सैंकड़ों अवैध निर्माण है जो विभाग को मुंह चिढ़ा रहे है। ऐसा भी माना जाता है कि इन निर्माणों के स्वामियों या बिल्डरों से विभागीय अधिकारियों के भी तार अंदर खाने जुड़े हुए है। ज्ञात हो कि सरकार द्वारा चलायी गई (ओटीएस) की स्कीम की आड़ में भी अधिकारियों द्वारा एक बड़ा खेल खेला जा रहा है। दरअसल यह स्कीम उन लोगो को लाभ पहुचांने के लायी गयी थी। जिनके नोटिस 31/12/2020 से पहले के कटे हुए है वह लोग इस योजना का लाभ ले सकते है। लेकिन विभाग में कुछ ईमानदार अधिकारियों ने इसकी परिभाषा ही बदल कर रख दी। अब हरिद्वार विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने इस योजना को केवल भू-माफियाओं व बिल्डरों को लाभ पहुंचाने तक सीमित कर दी है। विभाग के अधिकारियों ने इसके माध्यम से पहले आओ पहले पाओ वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है। मतलब साफ है कि नियम, कायदे कानून कुछ नही होता जो मोटा शुल्क देगा। वहीं इस स्कीम के साथ अपने निर्माण को आराम से बेखौफ होकर पूरा कर सकता है। फिर चाहे निर्माण अवैध ही क्यों न हो अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई ठोस नीति बनाती है या ईमानदारी का ढ़ोल पीटने वाले विभाग के अधिकारी इस खेल की आड़ में अवैध निर्माणों को पूरा करवा कर अपनी जेबे भरते रहेंगें। यह सवाल हमेशा खड़ा रहेगा।

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