देहरादून, प्रेमसुख धाम 16 नेशनल रोड के प्रांगण में तृतीय दिवस पर्युषण की बधाई देते हुए जैन संत अनुपम मुनि जी महाराज ने कहा की जब जीवन में वैराग्य घटित होता है तो 6 खंड के राज्य का लोभ भी मनुष्य को वैराग्य के रास्ते पर चलने से नही रोक पाता। 6 खंड का लोभ भी हार जाता है तो वैराग्य की प्राप्ति जिनवाणी के द्वारा होती है। और जीवन में वैराग्य आता है तो समग्र रूप से लोभ की भावना खत्म हो जाती है मन और आत्मा तृप्त होता है, और आत्मा रमन में लगा रहता है आत्म ध्यान में लगा रहता है मनसा वाचा कर्मणा सन्यास हो जाता है । ऋषभदेव आदि 24 तीर्थंकरों की तरह आत्म में लीन हो जाता है, वीतराग को उपलब्ध होता है जीवंत रूप से मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है।
मुनि श्री ने आगे अंतरित दर्शन क्षेत्र की आवाज नहीं करते हुए कहा कि जैसे कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने अपने भाई सुकमल को तीन खंड का अधिपति बनाने का लालच दिया लेकिन सुकमाल मुनि ने श्रीखंड का राजपाट सब कुछ छोड़ कर वैराग्य को उपलब्ध होकर पंचमुखी रोज करके संसार की वृत्ति का त्याग कर भगवान अरिष्ठनेमी के चरणों में स्थित दीक्षित और प्रवृत्त हो गए और महाकाल श्मशान में भिक्षु प्रतिमा को धारण करके सिद्ध बुद्ध और मुक्त हुए, वैराग्य ही श्री खंड के लालच को भी छुड़वा देता है इसीलिए वैरागी जीवन अति श्रेष्ठ जीवन पूजनीय जीवन है पूजा के योग्य है। जैन स्थानकवासी संत लोकमान्य गुरुदेव अनुपम मुनि जी महाराज ने कहा वैराग्य उपलब्ध होने के बाद 6 खंड के अधिपति भरत चक्रवर्ती ने भी 7000 रानियों को छोड़कर हीरा पन्ना सोना राजरानी या पटरानी या आदि सब छोड़कर भगवान के श्री चरणों में ऋषभदेव के श्री चरणों में विकसित होकर अपनी आत्मा का कल्याण किया। आज के कार्यक्रम का मुख्य अतिथि श्रावक जनार्दन जैन और मंजू जैन को बनाया गया वर्धमान श्रावक संघ प्रेमसुख धाम के सभी कार्यकर्ताओं ने और भाग्यज्योति महिला मंडल के सभी कर्ताओं ने दोनों पति-पत्नी का भरपूर रूप से सम्मान किया।