देहरादून। जैन धर्म के पर्वाधिराज दसलक्षण महापर्व के चैथे दिन उत्तम सत्य धर्म के दिन परम पूज्य श्रमणोपाध्याय श्री 108 विकसंत सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में प्रतिदिन शहर के सभी मंदिरों में नित्य नियम पूजा के साथ संगीतमय दस लक्षण महामंडल विधान का लाभ उठाया और पुण्य अर्जन किया। इस अवसर पर महाराज श्री विकसंत सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा आज उत्तम सत्य धर्म का दिन है। जहाँ क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच आत्मा का स्वभाव है। वहीं सत्य संयम, तप, त्याग इन गुणों को प्रगट करने के उपाय हैं, या कहें कि ये वो साधन हैं जिनसे हम आत्मिक गुणों की अनुभूति और प्रकट कर सकते हैं।
जैन दर्शन में सत्य का अर्थ मात्र ज्यों का त्यों बोलने का नाम सत्य नहीं है, बल्कि हित-मित-प्रिय वचन बोलने से है। हितकारी वचन यानि जिसमें जीव मात्र की भलाई हो, कहने का अभिप्राय ये है कि जिन वचनों से यदि किसी जीव का अहित होता हो तो वे वचन सत्य होते हुये भी असत्य ही है। मित यानि मीठा बोलो अर्थात् कड़वे वचन, तीखे वचन, व्यंग्य परक वचन, परनिंदा, पीड़ाकारक वचन सत्य होते हुये भी असत्य ही माने गये हैं। प्रिय वचन यानि जो सुनने में भी अच्छे लगे, ऐसे वचन ही सत्य वचन हैं। इसी कड़ी मे दोपहर में महिला जैन मिलन के तत्वाधान में जैन धर्मशाला में देशना दीदी के निर्देशन में भजन कीर्तन किया गया जिसमें महिला जैन मिलन की महिलाओं ने एवं समाज के अन्य लोगों ने प्रतिभा किया और कार्यक्रम का आनंद लिया संध्याकालीन आरती के साथ-साथ सांध्यकालीन कार्यक्रमों की श्रृंखला में दस लक्षण महापर्व के शुभ अवसर पर भारतीय जैन मिलन की शाखा जैन मिलन मूकमाटी द्वारा गांधी रोड स्थित जैन धर्मशाला में दसलक्षण का चैथा दिन उत्तम सत्य धर्म के दिन कार्यक्रम किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ महावीर प्रार्थना व भगवान महावीर के सामने दीप प्रज्वलन करके किया गया तत्पश्चात पर्यूषण पर्व पर मूक माटी की महिलाओं द्वारा एक वंदना प्रस्तुत की गई साथ ही इस दिन की विशेष प्रस्तुति एक नाटिका सती सीता की अग्नि परीक्षा से वैराग्य तक की कहानी का मंचन किया गया। इस कहानी में आप देखेंगे के श्री राम का लोक अपवाद के कारण सीता जी का त्याग करना, व वनवास से लौटी सीता को अग्नि परीक्षा देकर अपने चरित्र को सिद्ध करने के लिए कहा जाता है। बस श्री राम के द्वारा कही हुई एक बात से उन्हें वैराग्य हो जाता है और वह अपनी इस ग्रस्त जीवन को छोड़कर दीक्षा ले लेती हैं और उसे आत्मज्ञान के पथ का अनुसरण कर लेती हैं जब श्री राम को अपनी गलती का एहसास होता है और उसी भव से वह भी दीक्षा ले लेते हैं इस नाटिका में मूक माटी की वीरांगनाओं द्वारा ही अभिनय किया गया है। इस अवसर पर जैन समाज के अध्यक्ष विनोद जैन उत्सव समिति के संयोजक संदीप जैन, अजीत जैन, अमित जैन, अर्जुन जैन, मीडिया संयोजक मधु जैन अंकुर जैन जूली जैन पूर्णिमा जैन, वीणा जैन, रश्मि उमा जैन, विवेक जैन, अशोक जैन, डॉक्टर संजीव जैन आदि लोगों उपस्थित रहे।