देहरादून, भाजपा ने राज्य स्थित गैस आधारित उत्पादन संयंत्रों एवं फिक्स्ड चार्ज की देयता पर कांग्रेस अध्यक्ष की टिप्पणी को जानकारी का अभाव और कांग्रेस कार्यकाल की ही उपज बताया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल मे किये गए लेखे जोखे का अध्ययन करने की जरूरत है। भाजपा अध्यक्ष श्री भट्ट ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उत्तराखण्ड गैस आधारित ऊर्जा उत्पादन नीति, 2011 दिनांक 14.02.2011 को जारी की गयी।
उक्त गैस आधारित ऊर्जा नीति के अनुसार तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कैबिनेट के निर्णय की अनुपालनता में जून-2016 में निर्गत शासनादेश द्वारा राज्य में स्थापित गैस संयंत्रों (मै0 श्रावन्थी 214 मेगावाट, मै. गामा 107 मेगावाट, मै. बीटा 107 मेगावाट) से दीर्घकालीन अर्थात् 25 वर्षों हेतु अनुबन्ध किये जाने सम्बन्धी निर्देश निर्गत किये गये। 19.मार्च.2019 को मै. बीटा के साथ किया गया पी0पी0ए0 प्लान्ट न लगाये जाने के कारण निरस्त कर दिया गया। भारतीय विद्युत अधिनियम, 2003 के अन्तर्गत केन्द्रीय अथवा राज्य विद्युत नियामक आयोगों के द्वारा पूरे देश में एक ही सिद्धान्त के आधार पर टैरिफ का निर्धारण किया जाता है। इसके अनुसार किसी भी विद्युत परियोजना का टैरिफ दो भागों में, 1 फिक्स्ड चार्ज/कैपेसिटी चार्ज
और इनर्जी/वैरियेवल चार्ज, देय होता है। फिक्स्ड चार्ज/कैपेसिटी चार्ज की यह देयता सिर्फ गैस आधारित प्लान्टों पर ही नहीं अपितु हर प्रकार के उत्पादन संयंत्रों, कोयला आधारित, गैस आधारित एवं जल विद्युत परियोजनाओं, पर भी लागू होती है जिनके साथ दीर्घकालीन अनुबन्ध/पीपीए के आधार पर विद्युत क्रय की जाती है। इनमें एनटीपीसी के गैस आधारित विद्युत संयंत्र यथा अन्ता, औरैया तथा दादरी के भी शामिल हैं जिनके साथ भी यूपीसीएल एवं अन्य राज्यों के द्वारा दीर्घकालीन अनुबन्ध/पीपीए किये गए हैं। उतराखण्ड विद्युत नियामक आयोग द्वारा मै श्रावन्थी हेतु वार्षिक फिक्स्ड चार्ज/कैपेसिटी चार्ज लगभग रू 267 करोड़ तथा मै. गामा हेतु लगभग 102 करोड़ निर्धारित किये गये हैं। दीर्घकालीन अनुबन्ध/पीपीए कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं एवं अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार क्रियान्वयन में किसी एक पक्ष की ओर से किसी कमी/दोश के अभाव में पीपीए से बाहर आना हमेशा कानूनी रूप से चुनौती के योग्य होता है। विगत एक वर्ष से अर्न्तराष्ट्रीय कारणों से गैस की अल्प उपलब्धता एवं अत्यधिक दरों के कारण गैस
क्रय किया जाना वाणिज्यिक रूप से श्रेयकर नहीं है। इसलिए इन परिस्थितियों में बाजार में उपलब्ध सस्ते विकल्पों से विद्युत प्रतिस्थापित की जा रही है।