देहरादून, उत्तराखंड के पारंपरिक भोजन को पूरे देश में गढ़भोज के नाम से पहचान दिला कर थाली का हिस्सा व आर्थिकी का जरिया बनाने के लिये हिमालय पर्यावरण जड़ी बुटी एग्रो संस्थान जाड़ी वर्ष 2000 से राज्य में गढ़भोज अभियान चला रहा है। असल मंे उत्तराखण्ड का पारम्परिक भोजन दुनिया के चुनिंदा भोजन मंे से है जो भूख मिटाने के साथ साथ औषधी का काम भी करते हैं। पहाड़ की फसले पारिस्थितकी तंत्र में संतुलन बनाये रखने मे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। दुर्भाग्यवश ये फसले व उनसे बनने वाले भोजन कुछ वर्ष पूर्व हासिये पर चले गये थे, जो फिर आज धीरे धीरे हमारी थाली का हिस्सा बन रही है।
गढ़ भोज अभियान के लम्बे संघर्ष व सरकारों के प्रयासों से आज धीरे-धीरे फ़सलों के उत्पादन बढाने की कोशिश व बेहतर बाज़ार व्यवस्था के प्रयास जारी है। जिसे सब को मिलकर और बेहतर करने की जरुरत है। उत्तराखंड के पारम्परिक फसले व उससे बनने वाले गढ़भोज की खूबिया व सरक्षण को लेकर राज्यवासी सम्पूर्ण राज्य व राज्य से बाहर एक दिन उत्सव के रूप में मनाये इसके लिये जाड़ी संस्थान के द्वारा 7 अक्टूबर को ’गढ़ भोज दिवस’ मनाया जा रहा है। प्रथम ’गढ़ भोज दिवस’ का शुभारंभ प्रदेश के शिक्षा व स्वास्थ्य मंत्री डा. धन सिंह रावत करेंगे। गढ़भोज अभियान के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने प्रेसक्लब में आयोजित पत्रकार वार्ता में कहा की ’गढ़ भोज दिवस’ के अवसर पर उत्तराखंड के दो दर्जन से अधिक स्वस्थ, भोजन के विशेषज्ञांे द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम के लिये तैयार की गई पुस्तक का विमोचन किया जायेगा। गढ़ भोज दिवस पर राज्य के स्कूलों मंे मिड दे मिल (प्रधानमंत्री पोषण) योजना मे गढ़ भोज शामिल होगा। जिसकी पहली थाली मंत्री जी बच्चों को पारोसेंगे।
डा. अरविन्द दरमोडा ने कहा की गढ़ भोज अभियान दुनिया का एक मात्र एस अभियान है जो फ़सलों व भोजन को पहचान दिलाने के लिये चलाया गया है। जो सफल भी हुआ। हम सबका दायित्व बनता है की उत्तराखण्ड की भोजन संस्क्रति, विरासत को लोग जाने इस लिये गढ़ भोज दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। प्रो. यतीश वशिष्ठ ने कहा की उत्तराखण्ड के पारम्परिक भोजन गढ़ भोज की विषेशताओ को ज्यादा से ज्यादा लोग जाने व इसको राज्य व राष्टीय स्तर पर गढ़भोज उत्सव मनाने के लिये ’गढ भोज दिवस’ की कल्पना की गई। अक्तूबर का महीना इस लिये भी विशेष है की आजकल उत्तराखण्ड की फसले तैयार होकर खेत से घर पहुच रही है।